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गलत वीगो लगाया तो इंफेक्शन फैल गया, एम्स में हाथ काटना पड़ा लेकिन बचाया नहीं जा सका

20 मार्च को 1महीने के बच्चे को बुखार आया। पिता उसे लेकर पास के सरकारी अस्पताल पहुंचे। दवाएं दी गई लेकिन दो दिन तक आराम नहीं हुआ। उसे लेकर वह शहर के प्राइवेट हॉस्पिटल पहुंचे। यहां पीआईसीयू में भर्ती किया गया। बच्चे को विगो लगाया और 3 दिन बाद निकाला तो हाथ में इंफेक्शन फैल गया। पिता कुछ पूछते तो डॉक्टर कहते, कुछ नहीं, ठीक हो जाएगा। लेकिन वह ठीक नहीं हुआ। हाथ सड़ गया। और…5दिन बाद बच्चे की मौत हो गई।

इस दुखदाई खबर में हर कदम पर डॉक्टरों की लापरवाही शामिल है। उनका हठ उस बच्चे की जान ले गया। पीड़ित पिता चाहते हैं कि कार्रवाई हो। आरोपियों को सजा हो। पुलिस ने केस भी दर्ज किया लेकिन कार्रवाई ऐसी नहीं हुई कि पीड़ित परिवार संतुष्ट हो। हम पीड़ित परिवार से मिले। उन्होंने हमें पूरी बात बताई। आइए सबकुछ जानते हैं…

5 साल बाद बेटा हुआ तो गांव में जश्न मनाया गया
14 फरवरी 2024 की सुबह रायबरेली के रानीपुर गांव मे सुरेंद्र कुमार शर्मा के यहां बच्चे की किलकारी गूंजती है। सूचना गांव के लोगों को दी जाती है तो आसपास खुशी छा जाती है। बच्चे की दादी ने हनुमान जी से मान्यता मानी थी कि बेटा हुआ तो गांव में मिठाई बांटेंगी। उन्होंने अगले ही दिन पूरे गांव में लड्डू बांट दिया। 12 दिन बाद घर पर बच्चे को लेकर प्रोग्राम हुआ। बच्चे के बड़े पापा ने बच्चे का नाम राघव रखा। रिश्तेदार और गांव के लोग जुटे। बुजुर्गों ने बच्चे को आशीर्वाद दिया। महिलाओं ने सोहर गाया। कुल मिलाकर सबकुछ बहुत अच्छा रहा।

यह सुरेंद्र के घर का सामने का हिस्सा है। बच्चे की मौत के बाद सब दुखी हैं।

20 मार्च को बच्चे को बुखार आया। सुरेंद्र उसे लेकर 2 किलोमीटर दूर सरकारी हॉस्पिटल पहुंचे। वहां के डॉक्टरों ने चेक किया। बताया कि निमोनिया के लक्षण हैं। कुछ दवाईयां दी। दो दिन तक इलाज चला लेकिन बच्चे की तबियत में कोई सुधार नहीं हुआ। बच्चे की हालत खराब होती देख सुरेंद्र उसे 35 किलोमीटर दूर सत्यम हॉस्पिटल ले गए। डॉक्टर केएस सिंह ने बच्चे को पीआईसीयू में भर्ती कर दिया शाम को रिपोर्ट आती है कि बच्चे को निमोनिया हो गया है।

पिता ने बताया कि जिस दिन अस्पताल में भर्ती किया उसी दिन 25 हजार रुपए काउंटर पर जमा करवाया गया। 23 मार्च को बच्चे के दांए हाथ से वीगो बदलकर बाएं हाथ में लगाना था। जब वहां के स्टॉफ ने वीगो निकाला तो हाथ से पश जैसी चीज निकल रही थी। पिता ने वहां के स्टाफ से इस बारे मे बताया। डॅाक्टर जब राउंड पर थे तो उन्हे बताया। डॉक्टर ने कहा चिन्ता कि कोई बात नहीं है एक एंटीसेप्टिक क्रीम दी है ,उसे लगाओ।

तीन दिन बीत गए पर बच्चे को कोई आराम नहीं हो रहा था। इंफेक्शन आधे हाथ में फैल गया । बच्चे के मां-बाप ने डॉक्टर से फिर से सवाल किया कि "सर ये तो सही नहीं हो रहा है" डॉक्टर साहब गुस्सा होकर जवाब देते हैं, "अगर तुम्हे ही सब पता है तो तुम ही डॉक्टर बन जाओ।" बच्चे के पिता के चेहरे पर सन्नाटा छा जाता है। बच्चे की हाथ की हालत और बिगड़ती ही जा रही थी।

रेफर करने के लिए तैयार नहीं थे डॉक्टर
बच्चे के परिजनों ने जब डॉक्टर से कई बार बच्चे को जिला अस्पताल में दिखाने के लिए कहा तो डॉक्टर ने 21 मार्च को जिला अस्पताल रेफर दिया। जिला अस्पताल में इलाज के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति हुई। माता-पिता निराश होकर फिर से सत्यम हॉस्पिटल ले आए। दो दिन तक फिर से वहीं ड्रेसिंग होती रही। लेकिन कोई आराम नहीं हुआ। 2 महीने के छोटे बच्चे के पूरे हाथ में इंफेक्शन फैल चुका था। घर वालों ने जब बच्चे की हालत में कोई सुधार नहीं देखा तो उन्होने डॉक्टर से कहा, आप हमे यहां से डिस्चार्ज कर दो। हम अब बच्चे को एम्स लेकर जाएंगे। हॉस्पिटल ने मना किया तो घरवालों ने ऐसे ही बच्चे को लेकर एम्स पहुंच गए।

एम्स में दो बार ऑपरेशन लेकिन नहीं बची जान
बच्चे को 23 मार्च को सुबह एम्स में भर्ती कराया। कहा गया कि उसे गैंग्रीन की बीमारी हो गई। डॉक्टरों ने कई जांच कराने के लिए बोला। जांच रिपोर्ट आई तो डॉक्टरों ने दो बार हाथ का ऑपरेशन किया। लेकिन कोई सफलता नहीं मिली। डॉक्टरों ने कहा कि अब हाथ काटना पड़ेगा। यह सुनकर बच्चे की मां मानों सुन्न हो गई। उसे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि जिसे 9 महीने कोख में पाला उसके लिए कैसे कह दे कि हाथ काट दीजिए।

सुरेंद्र रो पड़े। उन्हें अब कोई ऑप्शन ही नजर नहीं आ रहा था। आंखो में आंसू लिए उन्होंने हामी भर दी। डॉक्टरों ने ऑपरेशन करके पूरी तरह से सड़ चुके हाथ को शरीर से अलग कर दिया। 24 घंटे बाद यानी 25 मार्च को खबर आती है कि जिस बच्चे का हाथ काटा गया उसकी मौत हो गई। यह खबर परिवार को सुन्न करने वाली थी। यह लड़ाई सुरेंद्र हार गए। बच्चे की मां अंजू का रो-रोकर बुरा हाल हो गया। जो ढंढस बंधाते उनकी भी आंखे डबडबा गई।

इलाज के लिए गहने तक बेच दिए
सुरेंद्र बताते हैं, “मैं मजदूरी करता हूं, जब हमारा बच्चा बीमार हुआ और उसको दिखाने के लिए सत्यम हॉस्पिटल ले गए तो उन्हे वहां 1 लाख रुपए से ज्यादा खर्चा करना पड़ा। इतनी बड़ी रकम जुटाने के लिए हमने अपने घर के जेवर तक बेच डाले।” आगे कहते हैं, दिनभर में डॉक्टर तीन बार राउंड पर आते थे। लेकिन दिन भर में बात केवल 10 सेकेंड के लिए करते थे। जब डॉक्टर से पूछो अब बच्चे की तबियत कैसी है? तो एक ही जवाब देते थे, "अब पहले से तबियत बेहतर है।"

  1. जब बच्चे की तबियत गंभीर हो गई तो अस्पताल की तरफ से या डॉक्टर केएस सिंह की तरफ से कोई बात भी नहीं की गई। उन्होने एक बार भी हमारा हालचाल नहीं पूछा।

सुरेंद्र रायबरेली की डीएम माला श्रीवास्तव से मिले। उन्होंने घटना पर दुख जताया। हमने पिता से पूछा कि क्या डीएम ने कुछ मुआवजे की बात की। सुरेंद्र कहते हैं कि हमारा तो बच्चा चला गया, हमें कोई मुआवजा नहीं चाहिए। हम चाहते हैं कि जो लोग गलत हैं उनके खिलाफ कार्रवाई की जाए।

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