आईआईएमसी और बिल्ली

भारतीय जन संचार संस्थान में प्रवेश के लिए मैंने प्रवेश परीक्षा दी। 21अगस्त को रिजल्ट आता है। सिलेक्टेड कैंडिडेट की लिस्ट में मेरा भी नाम था। लिस्ट में खुद का नाम देखकर आंखे नम हो गईं। नम हों भी क्यों ना बचपन का सपना जो था आईआईएमसी में पढ़ने का। घर में सबको बताया। पापा - मम्मी बहुत खुश हुए।

अब बारी डॉक्यूमेंट्स बनवाने की थी। बहुत से कागज तैयार नहीं थे। थोड़ा सा परेशान भी हुआ, कि अगर कागज नहीं बने तो कहीं एडमिशन ना रुक जाए। ऐसा हुआ नहीं ,बिना किसी दिक्कत के सारे कागज बन गए। वेरिफिकेशन के लिए सबमिट भी कर दिया। वेरिफाई भी हो गए। अब बारी भारी भरकम फीस जमा करने की थी। वह भी जमा कर दी।

ऑनलाइन वेरिफिकेशन हो गया था। अब बारी थी ऑफलाइन वेरिफिकेशन कराने की। अपना और अपने भाई का ट्रेन में रिजर्वेशन कराके,आईआईएमसी के लिए निकल पड़े। दूसरे दिन पहुंच भी गए। आईआईएमसी को पहली बार सामने से देख रहा था। यकीन नहीं हो पा रहा था कि मेरा एडमिशन आईआईएमसी में हो गया। डॉक्यूमेंट्स का ऑफलाइन वेरिफिकेशन कराया। उसके बाद कैंपस घूमने लगे। सामने से एक बड़ी प्यारी सी बिल्ली गुजरी, वैसे मैं कभी तो बिल्लियों को खिलाता नहीं हूं। मेरे मन में पता नहीं क्या आया ? मैं उस बिल्ली को पकड़ कर खिलाना चाहा। जैसे ही मैंने बिल्ली को पकड़ कर उसके सर पर हाथ रखा। वैसे ही उसने मेरे हाथ को अपने मुंह में भरना चाहा। मैने अपने हाथ को जल्दी ही उसके मुंह से खींच लिया। अपने हाथ को मैने देखा तो कहीं भी खून का निशान नहीं था और ना ही खरोंच का निशान था। मैं थोड़ी देर बाद इस बात को पूरी तरह भूल गया। अगले दिन घर के लिए ट्रेन थी और घर चला आया।

शाम को घर पर बैठकर मोबाइल में ट्विटर चला रहा था। अचानक ट्विटर के एक विडियो पर नजर पड़ती है। मेरा सर चकरा गया। दिमाग शून्य हो गया।

वीडियो में एक लड़का कुत्ते की तरह व्यवहार कर रहा था। बड़े अस्पताल के डॉक्टरों ने जवाब दे दिया था। पिता अपने बच्चे को एंबुलेंस में लिए हुए बैठे थे। बच्चा बहुत तेज से आवाजे निकाल रहा था। बच्चे की सांस टूट रही थी।पिता के लिए इससे ज्यादा क्या दुःख क्या हो सकता है? कि वह अपने बच्चे को अपनी गोद में मरते हुए देखे। यह वीडियो देखने के बाद मेरे सामने भी अपने हाथ में बिल्ली के काटने वाला दृश्य तैर गया। अखबारों में पढ़ा तो पता चला की बिल्ली के काटने के 24 घंटे के भीतर, रेबीज का इंजेक्शन जरूर लगवा लेना चहिए। मेरे केस में ये 36 घण्टे पहुंच रहे थे। अभी तक मैने घर में भी नहीं बताया था। घर में जाकर सभी लोगों को बताया। घर वालों ने उसे प्राथमिकता में नहीं लिया, क्योंकि मेरे हाथ में कहीं बिल्ली काटने का ना तो निशान था और ना ही खून निकला था। मेरे मन में तमाम तरह के विचार दौड़ रहे थे। मैंने फैसला किया कि अभी उतनी भी देर नहीं हुई। मैने तुरंत मेडिकल स्टोर पर जाकर टिटनेस का इंजेक्शन लगवाया। मेडिकल स्टोर वाले को पूरी बात बताई। उसने बोला अगर 24 घण्टे से ज्यादा हो गए तो अब इंजेक्शन का कोई फायदा नहीं। मेरा मानसिक तनाव चरम पर था। मेरी आंखों के सामने खुद की मौत दौड़ रही थी। जिन आंखों ने अभी आईआईएमसी का सपना पूरा होता देखा था। इन आखों ने जो बचपन में सपना पत्रकार बनने का देखा था । वह इतनी जल्दी मौत को भी देख रही थी। मैं सोंच रहा था, अभी तो मैं सफलता के पहले ही पायदान पर पहुंचा हूं। भगवान को इतनी भी जल्दी क्या?

जो दिमाग कुछ दिन पहले आईआईएमसी और जामिया में प्लेसमेंट के लिए सोच रहा था। आज वह मौत के लिए चिंता में था। इन सब अनिश्चितताओं के बीच रात हो गई। मन में डर को लेकर सो भी गया। रात भर अच्छी नींद नहीं आई। इधर - उधर पलटता रहा। सुबह जल्दी उठ गया। मन में फिर सब वही सब चलने लगा। अभी तो मम्मी - पापा को एक खुशी दे पाया था। सोच रहा था रेबीज का असर एक महीने तक हो जाएगा। मेरे पास एक ही महीने हैं। मेरा दिमाग अब कुछ ज्यादा ही सोच रहा था। यह भी सोच लिया कि जब एक महीने बाद नहीं रहूंगा तो,आईआईएमसी में सभी लोग कहेंगे कि एक लड़का आया था नन्ही सी आंखों में पत्रकार बनने का सपना लेकर लेकिन वह अधूरा ही रह गया। वैसे ही जिंदगी में सभी सपने पूरे कहां ही होते हैं।

पापा से बोला हॉस्पिटल चलकर रेबीज का इंजेक्शन लगवा दो। वह तैयार भी हो गए। डॉक्टर ने पर्चा बना दिया। डॉक्टर से पुछा सर दो दिन पहले बिल्ली ने काटा था कोई दिक्कत तो नहीं होगी,"बोले नही ऐसी कोई दिक्कत नहीं होगी, थोड़ा और पहले आ जाते तो ज्यादा अच्छा होता।"फिर से मन में वही सब चलने लगा। जीने की अनंत इच्छा लेकिन शायद जिंदगी वो इजाजत नहीं दे रही थी। जिंदगी की एक यही उम्मीद दिख रही थी , शायद बिल्ली का दांत अंदर नहीं गया हो। ना तो ब्लड निकला है। न तो खरोंच है। शायद वह काट ही ना पाई हो,हॉस्पिटल से घर आ गए थे। सभी लोग अंदर बैठे थे। मैं बाहर बैठकर जिंदगी के बारे में सोच रहा था कि अगर मुझे कुछ हुआ तो उसके बाद क्या होगा?! अंदर से यही जवाब आ रहा था आईआईएमसी में कुछ बच्चे अपने फेसबुक वॉल पर मेरी फोटो डालेंगे। लिखेंगे की एक लड़का पत्रकार बनने से ही पहले ही बिगड़ गया। मुझे लगा शायद जिंदगी यही चाहती रही हो कि तुम्हारा आईआईएमसी वाला ही सपना पूरा हो सकता है। मैने भी सोच लिया कि ठीक ही है। कम से कम ये सपना पूरा तो हो गया। मेरी छोटी सी आंखों ने जिंदगी के लिए इतने सारे सपने देखे थे वह सब टूट रहे थे। आनंद प्रधान सर से फोन पर बात किया था। उन्होंने एक बात बोली थी किसान के बेटे हो "किसान बारिश की चिंता किए बिना खेती करता है, तुम भी बिना प्लेसमेंट की चिंता किए बगैर आईआईएमसी आओ, उनकी बाते भी याद आ रही थीं। उन्होंने यह भी कहा था कि "9 महीने बाद की चिंता क्यों करते हो? भूकंप आ जाए हम सब लोग ही न बचे"। मैंने सोचा मेरी जिंदगी में भूकंप तो आ चुका है। जिंदगी में नौकरी को लेकर जितने सारे डर थे। वह मौत के सामने छोटे लगने लगे थे। लग रहा था अगर भगवान एक मौका दे दे तो बहुत कुछ अच्छा कर सकता हूं। मोबाईल की स्क्रीन ऑन की। दैनिक भास्कर का एक ट्वीट आया। जिसमें लिखा था। कुत्ते के काटने के बाद 72 घण्टे गोल्डन आवर। पूरा आर्टिकल पढ़ा। पढ़ने के बाद लगा शायद अभी जिंदगी बाकी है। उसमे लिखा था कि यदि आप 72 घण्टे के अंदर इंजेक्शन लगवा लेते हैं, तो आप बच सकते हैं। घर गया सबको बताया। घर में सब मुझपे हंस रहे थे। मैने मन में सोचा अभी इन लोगों को कुछ पता तो है नहीं। पापा से कहा वो अपने राधा कृष्णन डॉक्टर के पास फोन लगाओ, और उनसे पूछो कि कोई दिक्कत तो नहीं है। पापा बोले तुम पागल हो। मैने फ़िर से जोर देते हुए कहा एक बार पूछ तो लो बड़ी गंभीर बीमारी है। राधा कृष्णन सर पर मैं इस लिए ज्यादा विश्वास करता हूं क्योंकि उन्होंने पहले भी मेरा इलाज किया है। बड़े डॉक्टर हैं। पापा ने फोन मिलाया। उन्होंने उठा लिया। बोले " बोलो चौहान साहब"।

पापा ने बताया बड़े वाले बच्चे को 2 दिन पहले पहले बिल्ली ने काट लिया था, तो थोडा सा देर से इंजेक्शन लगवाया कोई दिक्कत की कोई बात तो नहीं है। डॉक्टर साहब बोले लक्षण दिखने से पहले इंजेक्शन लगवा लेना चहिए। पापा मजाक में बोले इनके अंदर तो बहुत सारे लक्षण हैं। फोन कट गया। डांट भी पड़ी। अब मेरे मन को कुछ सुकून था। चार दिन बाद फिर इंजेक्शन लगवाया। तब तक कोई लक्षण नहीं थे। आईआईएमसी में ऑरेनटेशन चालू होने वाला था। बाकी के इंजेक्शन अब दिल्ली में लगवाने थे। ट्रेन पकड़ के दिल्ली आ गया। अभी तक सकुशल हूं।

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