चिंता का सबब जलवायु परिवर्तन

स्वस्थ जीवन के लिए पर्यावरण एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। किसी ने सही कहा है कि "जानवरों और मनुष्यों के बीच अंतर यह है कि जानवर पर्यावरण के लिए खुद को बदलते हैं ,लेकिन मनुष्य अपने लिए पर्यावरण को बदलते हैं "।

अप्रत्याशित रूप से गर्म होती हुईं धरती

कुछ सालों से हम देख रहे हैं कि हमारी पृथ्वी के तापमान में आश्चर्यजनक रूप से परिवर्तन हो रहा है। ठंडी के समय में गर्मी और गर्मी के समय में ठंडी पड़ रही है। इस बार मौसम विभाग की आशंका है कि मई जून के महीने में रिकॉर्ड तोड़ गर्मी पड़ेगी। आशंका है कि 2030 तक दुनिया के कई देशों में इतनी गर्मी पड़ेगी की मनुष्य के लिए उसे सहन करना आसान नहीं होगा।

इन सभी चेतावनियों को आप हल्के में नहीं ले सकते , यूरोप के देशों के जंगलों में आग का कहर देखा गया जिससे वहां का तापमान बहुत ही ज्यादा बढ़ गया और जंगल के सारे जीव जंतु मारे गए। इन सभी परेशानियों के पीछे हम लोग ही हैं, क्योंकि विकास के नाम पर प्रकृति से छेड़छाड़ करना हम लोगों की आदत बन गई है।

मौसम विभाग की माने तो 1961 से 2010 तक हर साल करीबन 1176.9 मिलीमीटर वर्षा होती थी लेकिन 1971 से 2020 के बीच 1160.01 मिलीमीटर बारिश हुई। नए आंकड़ों के अनुसार देश में होने वाली सामान्य वर्ष में वर्षा की माप में भी 16.18 मिलीमीटर की कमी आई है।

भारतीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की जून 2020 में जलवायु परिवर्तन आई रिपोर्ट में कहा गया कि 1986 से 2015 के बीच गर्म दिनों का तापमान 0.63 डिग्री सेल्सियस और सर्द रातों का तापमान 0.4डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा है। अगर यही रुझान आगे भी बना रहा तो वर्ष 2100 तक गर्म दिनों का तापमान 4. 7 और सर्द रातों का तापमान 5.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा।

कुछ दिन पहले जोशीमठ में जमीन दरकने की घटना सामने आई थी, एक रिपोर्ट के अनुसार जोशीमठ रेत और पत्थर के जमाव पर स्थित है । यह मुख्य चट्टान पर नहीं है यह एक प्राचीन भूस्खलन पर स्थित है और वहां पर बेतरतीब तरीके से होटलों का निर्माण किया गया ।। ग्रेनाइट लगाकर पहाड़ों को तोड़ा गया नतीजतन प्रकृति का रौद्र रूप वहां की स्थानीय लोगों को देखना पड़ा।

मानव ने प्रकृति को दिया कुछ नहीं और उससे बहुत कुछ लिया । अभी कुछ दिन पहले तुर्की में भूकंप ने भारी तबाही मचाई मनुष्यों के द्वारा किए गए सालों के विकास को प्रकृति ने चंद सेकंड में ही धराशाई कर दिया पूरा शहर मौत की आगोश में चला गया लेकिन मनुष्य तब भी समझने को तैयार नहीं है

इस तरह के संकेतों के बावजूद मनुष्य अपने दैनिक कार्यों में व्यस्त है लेकीन यदि आप इस पर्यावरण को नुकसान पहुचाओगे तो प्रकृति अपना बदला जरूर लेगी क्योंकि ये पृथ्वी कई करोड़ों साल से है और पृथ्वी पर करोड़ों साल पहले बहुत ताकतवर जीव रहते थे वो भी एक झटके में खत्म हो गए खैर उसकी बात और किसी दिन।

इन बातों के बाद आप यह जरूर सोचिएगा कि जिस दिन प्रथ्वी जरूरत से ज्यादा गर्म हो गई उस दिन क्या होगा??

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