भारतीय समाज में महिलाओं का स्थान!!

भारतीय समाज हमेशा से पितृ सत्तात्मक सोच वाला रहा है। हमारे समाज में महिलाओं की एक बड़ी आबादी अपनी मूल सुविधाओं से भी वंचित हैं। भारत की 48.3% आबादी महिलाओं की है लेकिन उनका प्रतिनिधित्व इसके आधे से भी कम है।

आजादी के 75 साल बाद भी लोकसभा में 78 महिला सदस्य ही चुनकर पहुंची जो एक चिंता की बात है। इसी तरह नौकरशाही में महिलाएं 11.5% और सर्वोच्च न्यायालय में महिलाओं की संख्या 11% है। जो उनकी आबादी के हिसाब से बिल्कुल न्याय संगत नहीं है ,बात करें हमारे देश की आईआईटी से लेकर यूपीएससी तक जैसे शीर्ष संस्थानों में आधी आबादी की हिस्सेदारी एक चौथाई ही नजर आती है।

साल 2019 में देश के कुल 23 आईआईटी में लड़कियों की भागीदारी महज 17.84% थी, इस स्थिति की गंभीरता को तब और अधिक बल मिलता है जब पता चला कि साल 2019 में आईआईटी बॉम्बे में कुल 1015 अभ्यर्थियों का एडमिशन हुआ था, जिसमें लड़कियां सिर्फ 199 थी। साल 2022 में आईआईटी दिल्ली में मात्र 18.5% लड़कियों ने एडमिशन लिया। यही हाल संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) की परीक्षा में कुल चयनित अभ्यर्थियों की संख्या में लड़कियों की संख्या उनकी आबादी की तुलना में बहुत कम थी, 2020 में चयनित अभ्यर्थियों में लड़कियां सिर्फ 28% थी।

2016 में प्रकाशित एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक इंटर तक की पढ़ाई करने के बाद 84% लड़कियां आगे के लिए पढ़ाई छोड़ देती हैं। 2010 से 2020 के बीच भारत में कामकाजी महिलाओं की संख्या 26% से गिरकर 19% रह गई।

संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट के अनुसार यह अनुमानित है कि भारत में बेटे को वरीयता देने की सोच के चलते 460 लाख बेटियों का जन्म ही नहीं होने दिया गया यह हाल तब है जब भारत में भ्रूण लिंग जांच करना या करवाना दोनों संगीन अपराध है। यह हाल उस देश का है जिस देश में नवरात्र के 9 दिन मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा होती है छोटी कन्याओं को घर बुलाकर खाना खिलाया जाता है फिर यह सब आंकड़े हम सब लोगों का दिल दहला देते हैं।

भारतीय समाज में यदि बेटा हो जाए तो वह किसी भगवान मिलने की खुशी से कम नहीं है वही बेटी होने पर अमूमन परिवारों में दुख जैसा माहौल रहता है यदि बेटी इतने कष्टों के बाद हो भी गई तो उसे हर समय पराई होने का एहसास कराया जाता है, भारतीय समाज में एक जुमला बेहद कॉमन है कि बेटियां पराया धन होती हैं, लेकिन उन्हीं बेटियों में से एक बेटी ने अपने पिता लालू यादव को अपनी एक किडनी दे दी। वहीं दूसरी तरफ एक आईएएस के दादी और दादा ने सेवा ना हो पाने के कारण अपनी जान दे दी।

इतने सारे नकारात्मक तथ्यों के बावजूद बेटियों को जब जब मौका मिला है तो उन्होंने खुद को साबित किया है आज के समय में लड़कियां संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा में टॉप कर रही हैं , कुछ दिनों पहले सर्वोच्च न्यायालय ने लड़कियों को भी एनडीए की प्रवेश परीक्षा में बैठने की इजाजत दी और पहली ही बार में देश की पहली महिला एनडीए बैच की परीक्षा में हरियाणा की शनन ढाका टॉपर बनी। लड़ाकू विमान उड़ाने वाली भारत की इकलौती महिला पायलट शिवांगी सिंह बनी दूसरी तरफ सबसे ऊंचे युद्ध क्षेत्र सियाचिन में तैनात होने वाली पहली महिला अफसर कैप्टन शिवा चौहान बनी। अनुसूचित जनजाति की द्रौपदी मुर्म भारत की राष्ट्रपति बनी।

आज जन धन योजना के तहत 56 % खाते महिलाओं के हैं, जिनमें से 67% खाते ग्रामीण और कस्बाई क्षेत्रों में है। मुंबई में महिलाएं टैक्सी भी चला रही हैं और सामान की डिलीवरी भी कर रही हैं|

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